कसम से।
कसम से ।
कसम से नही गुजरेंगे।
हम उस गली से अब।
जहाँ ढुढँती है मेरी नजरें।
उसको इधर उधर।
बीत गया वो जमाना ।
कभी हम भी बहक।
जाया करते थे।
पाने को उसकी एक नज़र।
ना ख्वाहिश थी कोई।
ना कोई अपनापन।
फिर भी ना जाने क्यु।
ढुढँती मेरी नज़र उसकी गुज़र।
वो लम्हे क्या थे ।
हम नही जानते।
एक नज़र का प्यार थे वो।
या उठी थी सैलाब बन एक लहर।
इश्क की गलियाँ।
इश्क के रास्ते।
अब भी गुजरते जब वहाँ से।
ना जाने क्यु नज़र जाती ठहर।
🌹🌹(नजरिया)🌹🌹
Aliya khan
04-Jun-2021 06:58 AM
बहुत बढ़िया
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Sonali negi
03-Jun-2021 10:28 PM
बहुत ख़ूब पंक्तिया लिखी है आपने
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Kumawat Meenakshi Meera
03-Jun-2021 09:41 PM
Nice
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